राठौड़ वंश का इतिहास नोट्स,History of Rathore Dynasty

मारवाड़ के राठौड़ वंश का इतिहास

  • राठौड़ शब्द का उत्पत्ति राष्ट्रकूट शब्द से हुई है। 
  • औरंगजेब की मृत्यु तक अपने को स्वतंत्र रखने का प्रयास करने वाजपूत राज्य मारवाड़ राज्य था, तो मारवाड़ की संकटकालीन राजधानी 'सिवाना दुर्ग' थी। 
  • मारवाड के वे सामंत जिन्हें राजा का निकट संबंधी होने के कारण तीन पीढ़ियों तक चाकरी और रेख देने से मुक्त रखा जाता था, वे राजवी सामंत कहलाते थे। 
  • मारवाड़ में वीरता, साहित्य, सेवा के लिए 'सिरोपाव देने की परम्परा रहा था, जिसम सर्वोच्च घोड़ा सिरोपाव था, तो मुगल बादशाह अपनी विजयों में से आधी के लिए राठौड़ों की एक लाख तलवारों के अहसानमन्द थे ।' ये कथन कर्नल टॉड ने कहा। 
  • सियारत मारवाड़ रियासत के सामंत थे। 


राव सीहा
  • इन्होनें मारवाड़ के राठौड़ वंश की स्थापना 13वीं शताब्दी में की अतः इन्हें मारवाड़ के राठौड़ों का संस्थापक/ मूल .पुरुष/आदिपुरुष' कहते हैं। 

रावचुंडा
  • यह वीरमदेव का पुत्र था। चूड़ा मारवाड़ के राठौड़ो में प्रथम प्रतापी शासक था, जिसने प्रतिहारों की इन्दा शाखा के राजा की पुत्री किशोर कुँवरी से विवाह किया, जिसके बदले में उसे मण्डोर दुर्ग दहेज में मिला। 
  • इसने मण्डोर को अपनी राजधानी बनाया। 


राव कान्हा
  • चूड़ा की छोटी मोहिलाणी रानी किशोर कुँवरी का पुत्र था। यह उत्तराधिकारी न होते हुए भी चूड़ा ने इसे राजा बनाया। 


राव रणमल
  • यह चडा की पटरानी सोनगरी रानी चाँद कँवर का बड़ा पुत्र था, जब इसे राजा नहीं बनाया गया तो वह मेवाड के राणा लक्ष सिंह की शरण में चला गया जहाँ उसे धणला की जागीर प्राप्त हुई।
  • रणमल राठौड़ ने अपनी बहन साका विवाह सशर्त (हंसाबाई का उत्तराधिकारी मेवाड़ का शासक बने) राणा लाखा से कर दिया। 
  • मेवाड के मोर की सहायता से कान्हा को पराजित कर मारवाड़ का राजा बन गया। इसकी हत्या मेवाड़ी सरदारों ने (ख्यातों के अनुसार कुम्भा के काल में रणमल की प्रेमिका भारमली ने शराब में विष मिलाकर हत्या) की|

राव जोधा
  • यह रणमल (पिता) व कोडमदे (माता) का पुत्र था। जिसने 13 मई, 1459 ई० में जोधपुर नगर बसाकर चिडिया पहाड़ी पर महरानगढ़ दुर्ग बनवाया। 
  • इसने जोधपर को अपनी राजधानी बनाया। 
  • मण्डोर का सिहासन के लिए राव जोधा ने राणा कुंभा के साथ भयंकर लड़ाई की थी।


राव गंगा

  • इन्होने 1527 के खानवा युद्ध में अपने पत्र मालदेव के साथ साँगा की सहायता की क्योंकि सांगा की पुत्री पद्मावती इनकी पत्नि थी। 
  • इनके पुत्र मालदेव ने इनको महल की खिड़की से गिराकर इनकी हत्या कर दी अत: मालदेव 'मारवाड का पितृहन्ता' कहलाता है। 


राव मालदेव 
  • यह राव गांगा का पुत्र था जिसका राज्याभिषेक सोजत (पाली) में हुआ। 
  • इसे फारसी इतिहासकारों ने हशमत वाला शासक तथा फरिश्ता व बंदायनी खाँ ने भारत का महान परुषार्थी राजकुमार' कहा है । 
  • मालदेव मारवाड़ का सबसे योग्य व प्रतापी शासक था, जिसे 52 यद्धों का नायक और 18 परगनों के रूप में प्रतिष्ठित माना गया। 
  • इसने 1541 में पाहोबा/साहेबा के यद्ध' में बीकानेर के राव जैतमी को हराया। 
  • 5 जनवरी, 1544 ई. में गिरा सुमल/ जतारण/ सुमेलगिरी के यद्ध' में शेरशाह सूरी ने बड़ी मुश्किल से मालदेव की सेना की पराजित किया तब सूरी को कहना पड़ा कि एक मुट्ठी भर बाजरे के लिए में हिन्दस्तान की बादशाहत खो देता' 
  • बीकानेर के राव कल्याणमल ने सुमेल गिरी के युद्ध में शेरशाह सूरी की सहायता की थी। 
  • राव मालदेव का विवाह जैसलमेर के शासक राव लूणकरण की पुत्री उमादे के साथ हुआ। इसी उमादे को इतिहास में रूठी रानी' के नाम से जाना जाता है। 
  • मालदेव ने सोजत का दुर्ग (पाली), पोकरण का दुर्ग (जैसलमेर). मालकोट का किला (मेडता नागौर), शेरगढ़ दुर्ग (धौलपुर) का निर्माण करवाया। 
  • ध्यातव्य रहे-चौसा का युद्ध शेरशाह सूरी व हुमायूँ के मध्य हुआ। 


राव चन्द्रसेन
  • मालदेव ने अपने पुत्रों राम, उदयसिंह व चन्द्रसेन (तीसरे नम्बर की संतान) में से चन्द्रसेन को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। 
  • अकबर ने 3 नवम्बर, 1570 ई. को नागौर दरबार लगाया जिसमें चन्द्रसेन नागौर पहुँचकर बिना अकबर के अधीनता स्वीकार किये वापस जोधपुर पहँचा। 
  • अकबर नाराज होकर हुसैन कुली खाँ को जोधपुर पर आक्रमण करने के लिए भेजा। 
  • चन्द्रसेन जोधपर से भागकर भद्राजण (पाली) पहँचा। 
  • अकबर ने जोधपुर का प्रशासन 30 अक्टूबर, 1572 ई. को बीकानेर के रायसिंह को सौंपा। 
  • इन्होनें जीवन भर अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की इसी कारण इसे 'मारवाड़ का प्रताप/प्रताप का अग्रगामी/भूला बिसरा राजा/विस्मृत नायक' आदि नामों से जाना जाता है। 
  • इनकी मृत्यु 11 जनवरी, 1581 ई. को सोजत दर्ग पाली के पास सचियाप पर्वतों में सरणवा' नामक स्थान पर हुई जहाँ समाधि बनी हुई है। 

ध्यातव्य रहे-अकबर का आजीवन प्रतिरोध करने वाला प्रथम राजस्थानी शासक चन्द्रसेन था। 

राव उदयसिंह 
  • इन्हें मोटा राजा कहा जाता है। 
  • इन्होनें अपनी पुत्री मानबाई/भानमती/जगतगोसाई/मल्लिका-ए-जहाँ की शादी 1587 ई. में सलीम/जहाँगीर से की जिनसे खुर्रम/शाहजहाँ पैदा हुआ। 
  • उदयसिंह मारवाड़ का प्रथम शासक था जिसने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर उनसे वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये। 

ध्यातव्य रहे-जहांगीर ने दलथम्भन' (फौज को रोकने वाला) की पदवी जोधपुर के शासक महाराजा गजसिंह को दक्षिण भारत में मलिक अम्बर की सेनाओं पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष में प्रदान की थी।


जसवंत सिंह -1
  • इनका राज्याभिषेक आगरा में हुआ। 
  • उस समय जसवंत सिंह प्रथम का संरक्षक ठाकुर राजसिंह कम्पावत था। 
  • शाहजहाँ ने इन्हें 'महाराजा' की उपाधि दी। 
  • महाराजा जसवंत सिंह (जोधपुर) ने सिद्धांत बोध, आनंद विलास और भाषा भूषण जैसी पुस्तकें लिखी।
  • इन्होनें शाहजहाँ के उत्तराधिकारी के युद्ध में भाग लिया। 15 अप्रैल, 1658 ई. में धरमत का युद्ध (मध्य प्रदेश) में तथा 1659 में दोराई का युद्ध (अजमेर) दाराशिकोह व औरंगजेब के मध्य हुआ। जिसमें जसवंत सिंह ने दाराशिकोह का साथ दिया परन्तु दोनों युद्धों में औरंगजेब जीता। 
  • जसवन्त सिंह की अफगानिस्तान में जामरूद नामक स्थान पर 1678 में मृत्यु हो गई। 
  • इनकी मृत्यु होने पर औरंगजेब ने कहा 'आज कुफ्र/धर्म विरोधी दरवाजा' टूट गया है। 
  • ध्यातव्य रहे-1679 में औरंगजेब ने इन्द्रसिंह को मारवाड़ का शासक नियुक्त किया था। 


अजीत सिंह
  • मुगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के समय मारवाड़ का शासक अजीत सिंह था जो जसवंत सिंह प्रथम के पत्र थे। 
  • मारवाड के राठौडों ने दुर्गादास राठौड़ (जसवन्त सिंह के मंत्री आसकरण का पुत्र जिसे 'मारवाड़ का चाणक्य/मारवाड़, का अण बिन्दिया मोती/राठौड़ों का यूलिसेज' के नाम से जाना जाता है) के नेतृत्व में अजीत सिंह को राजा बनाने के लिए मुगलों के विरूद्ध सफलपूर्वक एक लम्बा संघर्ष किया परन्तु अजीतसिंह राजा बनने के बाद दर्गादास को राज्य से बाहर निकाल दिया। 
  • अजीतसिंह ने अपनी पुत्री इन्द्र कुमारी का विवाह फर्रुखशियर के साथ किया। 
  • अजीतसिंह के अभयसिंह (बड़ा) व बख्तसिंह (छोटा) दो पुत्र थे। छोटे पुत्र बख्तसिंह ने सोते हुए अजीतसिंह की हत्या कर दी अतः बख्तसिंह 'मारवाड़ का दूसरा पितृहंता' कहलाता है। 
  • इतिहासकार गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने मारवाड़ के अजीतसिंह राजा को कान का कच्चा' कहा है।


मानसिंह 
  • इन्हे सन्यासी राजा' कहा जाता है। इनके राजगरु गोरखनाथ सम्प्रदाय के आयस देवनाथ थे। 
  • इन्होनें जोधपर में महामन्दिर(नाथ सम्प्रदाय की मुख्य पीठ) बनवाया। 
  • जोधपुर किले मेंमान पुस्तक प्रकाश' पुस्तकालय की स्थापना मानसिंह ने की। 
  • जोधपुर के महाराजा मानसिंह के दरबारी कवि बांकीदासथे। 
  • इन्होनें 6 जनवरी, 1818 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ संधि की। 
  • मानसिंह राठौड़ व जगतसिंह द्वितीय के मध्य कष्णा कमारी के कारण 'गिंगोली का युद्ध हुआ। 
  • ध्यातव्य रहे- जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह के राज्याभिषेक उत्सव में पॉलिटिकल एजेंट लुडलो ने भाग लिया था, तो महारानी विक्टोरिया के स्वर्ण जुबली उत्सव में भाग लेने के लिए 1887 ई. में मारवाड़ के प्रतिनिधि के रूप में प्रतापसिंह (तख्त सिंह का छोटा भाई) को इंग्लैण्ड भेजा गया था।










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