दादू पंथ - दादूदयाल
16वीं शताब्दी के महान् संत
जन्म गुजरात के अहमदाबाद नगर में 1544 ई. में।
जाति - धुनिया।
दादू पंथ की स्थापना - 1554 ई. में।
दादूदयाल 1568 ई. में सांभर आ गए।
यह आमेर के राजा मानसिंह के समकालीन थे।
इन्होंने मानसिंह के समय हिन्दी मिश्रित सधुकड़ी भाषा में 'दादूजी री वाणी' तथा 'दादूजी रा दूहा' लिखे। इसके अलावा परिचय का अंग और कायाबेली ग्रंथ में वेदान्त उपनिषद तथा सांख्य दर्शन का विशेष वर्णन है।
सांभर में गरीबदास नामक पुत्र का जन्म हुआ। अन्य पुत्र मिस्कीनदास व पुत्रियां शोभाकुंवरी, रूपकुंवरी।
1585 ई. में फतेहपुर सीकरी में अकबर से भेंट की।
दादू ने स्थानीय भाषा ढूंढाड़ी में अपने सिद्धांतों का प्रचार किया।
दादू पंथियों की मुख्य गद्दी नरैना / नारायणा (दूदू) भैराणा पहाड़ी में है।
संत दादू को राजस्थान का कबीर कहते हैं।
दादू पंथ के सत्संग स्थल 'अलख दरीबा' कहलाते हैं।
संत दादूयाल 1602 ई. में नरैना आ गए जहां 1603 ई. में इनकी मृत्यु हो गई।
इनका पार्थिव शरीर भैराणा की पहाड़ी की एक खोह में रख दिया गया (पवित्र स्थल)।
दादू पंथ
● दादूजी के प्रमुख शिष्यों में बखनाजी, रज्जबजी, सुंदरदासजी, माधोदास, जगन्नाथजी प्रसिद्ध संत हुए।
● संत दादू की परम्परा में 152 शिष्य थे, जिनमें 100 गृहस्थी एवं 52 साधु हो गए, जो दादू पंथ के 52 स्तम्भ (थम्भे) कहलाए। दादू पंथ की 6 शाखाएं हैं-
1. खालसा - मुख्य पीठ नरैना से सम्बद्ध रहे, इनके मुखिया गरीबदास थे।
2. नागा- नागापंथ की स्थापना संत सुन्दरदास ने की।
यह अपने साथ हथियार रखते थे, ब्यावर राज्य में दाखिली सैनिक के रूप में कार्य करते थे।
सवाई जयसिंह ने नियम बनाकर इनके शस्त्र रखने पर पाबंदी लगाई।
3. विरक्त- ये रमते-फिरते दादू पंथी साधु थे। जो गृहस्थितयों को उपदेश देते थे।
4. खाकी- ये शरीर पर भस्म लगाते थे तथा खाकी वस्त्र पहनते थे।
5. उत्तरादे व स्थानधारी- दादू के ये शिष्य जो राजस्थान को
छोड़कर उत्तर की तरफ चले गये और उनकी जो शिष्य परंपरा चली वो उत्तरादे कहलाये। बाद में स्थान विशेष के निवासी बन जाने पर इन्हीं को 'स्थानधारी' कहा जाने लगा। इस शाखा के संस्थापक बनवारीदासजी थे जो हरियाणा की तरफ रनिया (हिसार) में रहे, यहां इनका मुख्य केन्द्र है।
6. निहंग - जो घुमन्तू साधु थे।
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